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स्थाई लेाक अदालत की स्थापना-एक विश्लेषण | Original Article

Kusum Dixit*, in Shodhaytan | Multidisciplinary Academic Research

ABSTRACT:

लोक अदालत एक पुरानी धारणा है, भारत का वैधानिक इतिहास यह याद दिलाता है कि प्राचीन भारत में लोक न्यायालयों ने विवादों को सुलझाने में विशेष भूमिका निभाई है। ब्रिटिशर ने लोक अदालत को महत्व न देते हुए केन्द्रीय न्याय व्यवस्था की स्थापना की तथा स्थानीय न्यायालयों को रॉयल कोर्ट में तबदील कर दिया गया। ब्रिटिशवासियों की इस नीति ने भारत की लोक, न्याय का पतन कर दिया। महात्मा गाँधी ने अपने कथन में कहा कि ब्रिटिश न्यायिक तंत्र तथा धीरे-धीरे बढ़ने वाला है। महात्मा गाँधी ने गाँववासियों को लोक अदालत ही एक मात्र सहारा बताया है] जिससे उन्हें अनावश्यक रूप से धन एवं समय व्यर्थ में अलग से मुकदमे के लिए गाँव से बाहर जाने की आवश्यकता नहीं हैं।