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परम्परा से विधान की ओर प्रवाहमान गोरक्षा का विधिशास्त्र | Original Article

Haricharan Singh Yadav*, Dharmendra Kumar Singh, in Anusandhan | Technology & Management

ABSTRACT:

गोहत्या प्रतिशेध हेतु आवश्यक विधिक उपायों के विरूद्ध आज भारत में अनेक स्वर मुखर हैं। वस्तुतः संवैधानिक निर्देशो को अग्रसारित करने वाले मौजूदा प्रयासों का तात्कालिक लक्ष्य जहां विधायन के माध्यम से लोकनीति को, जिसमें हिंसा का अतिसीमित स्थान है, अग्रसर करना है वहीं इसका एक विशद सांस्कृतिक पक्ष भी है। अपनी सुस्थिर गति में प्रतिगामी सामाजिक विचलन के लक्षणों का समाज विविध उपायों के माध्यम से प्रतिकार करता है। यह संघर्ष एक ऐतिहासिक तथ्य है और इसकी सम्पूर्ण यात्रा में रेखांकित हुआ है। प्रस्तुत अध्ययन ऐसे सूत्रों के उद्घाटन का एक प्रयास है जो अतीत से अपनी यात्रा आरम्भ कर वर्तमान में विधायनों और न्यायिक विवेचनाओं में सूत्रबद्ध भी हुए हैं। इसका उद्देश्य इस संभावना की खोज करना है कि क्या हम भारत की विगत यात्रा का पुनरावलोकन कर मौजूदा दृष्टिगोचर उथल पुथल के थम जाने की आशा कर सकते हैं और यदि हां, तो उपाय क्या हो सकते है?