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भारतीय बैंको की वित्तीय निष्पादन क्षमता का विश्लेषण (चयनित बैंको का एक अध्ययन) | Original Article

Amit Singh*, Laxminarayan Koli, in Shodhaytan | Multidisciplinary Academic Research

ABSTRACT:

भारत में भी बैंकिंग का इतिहास पुराना है। मनुस्मृति में ब्याज के बदले राशि उधार देने के पर्याप्त संकेत मिलते हैं। मौर्य काल में विनिमय पत्र, जिन्हें आदेश कहा जाता था, निर्गत किए जाते थे। बौद्ध काल में इन लिखतों का व्यापक उपयोग होता था। बड़े शहरों में व्यापारी एक दूसरे के लिए साख पत्र निर्गत करते थे। लोग अपनी बचत राशि को इन महाजनों के पास जमा करते थे तथा जमा राशि पर महाजन को ब्याज भी देते थे। महाजन धनराशि को उधार देते थे तथा उधार दी हुई राशि पर ब्याज वसूल करते थे। मुगल सम्राटों ने महाजनों और साहूकारों को कर वसूली के अधिकार दिए थे। आधुनिक बैंकों के आगमन के पहले महाजन बैंकिंग का काम करते थे। इस तरह हम देखते हैं कि भारतवर्ष में बैंकिंग प्रथा बहुत लम्बे समय से प्रचलित रही है। अंग्रेजों के आने तक भारत में देशी बैंकिंग व्यवस्था चलती रही। जैसे-जैसे ईस्ट इण्डिया कम्पनी का प्रभाव देश पर बढ़ने लगा, यह व्यवस्था टूटने लगी। ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने अपने अभिकर्ता गृह की स्थापना की। भारत में आधुनिक बैंकिंग व्यवस्था इन्हीं अभिकर्ता गृहों से आय होती है। ये गृह अपनी अन्य व्यवस्थाओं के साथ-साथ जमाराशि स्वीकार करते थे तथा व्यापारिक एवं औद्योगिक आवश्यकताओं को पूरा करते थे।